

Rahim ke dohe रहीम के दोहे
Rahim ke dohe रहीम के दोहे
कह रहीम कैसे निभे, बेर केर का संग ।
यै डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग ।।
एकै साधे सब सधैं, सब साधे सब जाय ।
रहिमन मूलहि सींचिबो, फूलै फलै अघाय ।।
छिमा बड़ेन को चाहिए, छोटन को उत्पात ।
का रहीम हरि को घटयौ, जो भृगु मारी लात ।।
टूटे सुजन मनाइये, जो टुटे सौ बार ।
रहिमन फिरि-फिरि पोइए, टुटे मुक्ताहार ।।
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजै डारि ।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करै तरवारि ।।
बड़े बड़ाई नहिं करैं, बड़े न बोलें बोल ।
रहिमन हिरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल ।।
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान ।
कहि रहीम परकाज हित, संपति सँचहि सुजान ।।
रहिमन याचकता गहे, बड़े छोट हवै जात ।
नारायन हूँ को भयौ, बावन अँगुर गात ।।
जो बड़ेन को लघु कहे, नहिं रहीम घटि जांहि ।
गिरिधर मुरलीधर कहे, कुछ दुख मानत नांहि ।।
रहिमन यहि संसार में, सब सो मिलिए धाइ ।
ना जाने केहि रूप में, नारायण मिलि जाइ ।।
अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम ।
साँचे ते तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम ।।